Thursday, July 28, 2022

क्या करूँगा मैं तुम्हारी,इन शुभकामनाओं का


मूल्य जब शून्य है, मेरी , अंतःभावनाओं का
क्या करूँगा मैं तुम्हारी,इन शुभकामनाओं का
दिन पर दिन व्यतीत हुए, वर्षों का समय गया
मन से लेश मात्र भी, वितृष्णा का भाव न गया
स्वार्थ की शर्करा से,क्यों भोग लगाना भावों का
क्या करूँगा मैं, तुम्हारी इन शुभकामनाओं का
आधे अधूरे स्वप्न मेरे, जब रक्तरंजित से पड़े रहे
तुम अपने ही गर्वानुभाव में,सीना तान खड़े रहे
व्यथा कहां सुनी तुमने,न उपचार हुआ घावों का
क्या करूँगा मैं तुम्हारी, इन शुभकामनाओं का
अब न बाकी स्नेह है मन में, न कोई अभिलाषा
स्वार्थ ने सारी बदल दी है, रिश्तों की परिभाषा
हल्का रह गया मोल,फ़राज़ अंतःभावनाओं का
क्या करूँगा मैं तुम्हारी,इन शुभकामनाओं का
©®राहुल फ़राज़
DT:२४/०७/२०२२

Monday, July 25, 2022

खुश रहने नही देते है

मुझे खुश रहने की, दुआ देते है
मगर, मुझे खुश रहने नही देते है
मुझसे कहते है, जिंदगी
जिंदादिली का नाम है
मगर, फ़राज़ को ज़िंदा
रहने नहीं देते हैं ।
©®राहुल फ़राज़

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*बात बस जरा सी है, मगर*
*ये उनको, समझाए कौन ?*
*बांटने से बढ़ती है खुशियां*
*मगर, ये लम्हे लाये कौन ?*

*मैं तो रखता हूँ, सम्हाल के*
*फिर वो लम्हे हो या रिश्ते*
*जेब से गिरे हो,उठा भी लूं*
*नज़र से गिरे,उठाये कौन?*
*©®राहुल फ़राज़*

जिसका डर था

वो न होते हालात,जिसका डर था,जो अब होंगे
हमनें तो,चाहा था साहिब-ए-मसनद आप होंगे

उगने वाले हैं ,अब कुकुरमुत्ते इस ज़मी पर भी
थी खैरियत दिल में, कि, मसले सभी हल होंगे

इक लम्बी खामोशी फैल गई है, बड़ी दूर तलक
अब भेड़ियों के शोर, अपने अडोस-पड़ोस होंगे

है ये आखरी मुकाम नही, सफर बहोत बाकी है
फ़राज़ आज चूहों के सही,कल शेरों के दिन होंगे
©®राहुल फ़राज़

महापौर चुनाव जुलाई 2022 में Dr जामदार जी की हार से दुखी होकर लिखी ।।

कोई गम मुझको भी तो तू अता करती जा

कोई गम मुझको भी तो तू अता करती जा
इश्क़ गुनाह है, तो मुझे मुज़रिम करती जा

बांध दे बेड़ियाँ मेरे पाँओं में, इन्तिज़ार की
बड़ा सुकून है जिंदगी में,कोहराम करती जा

दिल-ए-बस्ती में, न शोर कोई, न कोई रंज है
मस्तमौला है जिंदगी, तू नींद हराम करती जा

उकता गया हूं मैं,एक मुसलसल राह पे चलते
खुशहाल है रास्ते, तू बद से बदतर करती जा

यूं हर बात पर क्या, गुजरी रातों का हिसाब मांगना
इश्क में हिसाब क्या देखना, तू बेहिसाब करती जा

वक़्त बदले न बदले, कुछ पल को समां बदलेगा
फ़राज़ खुद कमाल है, तू इसे बेमिसाल करती जा
©®राहुल फ़राज़

बता बीमारी कौनसी है

सयाने हो सयानापन नही, समझदारी कौनसी है
बिना वजह यूं उलझते हो, बता बीमारी कौनसी है

मैं हरफनमौला-मस्तमौला तेरी आंख में खटक रहा
तन से उजले और मन से मैले, ये बीमारी कौनसी है

मैं मुसाफिर,तू भी मुसाफिर,किसने यहां रह जाना है
नाते गवां कर नगदी जमाना, ये बीमारी कौनसी है

घूमे शहर-शहर, हरि पूजे, तुझसे इंसान न पूजा जाय
माया के फेर में काया जलाय, ये बीमारी कौनसी है

न्यौता आवे भग-भग जावे, पाछौ बहुत ही शोर मचाय
मान-मन्नौअल तुझे रास न आवे, ये बीमारी कौनसी है

फ़राज़ तेरे दोहों से, मानव का तो जीवन तरजाय
रस्सी जले पर बल न जाय, ये बीमारी कौनसी है
©®राहुल फ़राज़

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?
इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ?
 
तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां
मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम करोगे ?
 
याद है ? मुकर गये थे ज़ुबाँ से ,रिवाजों से भी
ओ ! बे-तहज़ीब, अदब की बातें तुम करोगे ?
 
इतनें डूबे अहंकार में, आसमां पर थूकने चले ?
ईमान बेचने वाले तुम,तमीज़ की बातें तुम करोगे ?
 
ये फ़राज़ की जहानत थी, के रिवायत निभाते रहा
परवशता की आड़ में छिपे,लिहाज की बात तुम करोगे?
©®राहुल फ़राज़
 
इमानो दिल=दिल और ईमान की बात
नज़ीर=फैसला सुनाने की बात
रिवाज़=प्रथा/परंपरा/रीति
जहानत=योग्यता/समझदारी
रिवायत=परंपरा
परवशता=मजबूरी
लिहाज=आदर

Sunday, July 24, 2022

फिर से तलवे चाट आये हैं

घर घर आज वे फिरसे पर्चे बांट आये है ।
चढ़ते सूरज के फिरसे तलवे चाट आये हैं ।

वो भी खुश हैं कि, उनके चप्पलों की गर्द मिट गई
ये भी धन्य हुए,के बिछनें से कदमों में ठाठ आये है 

टके-टके पर बिक रहे हैं, सब्जी-तरकारी जैसे । 
इन्हें लगता है, ये शान से किसी हाट आये है । 

कदमों में बिछने के शौकीन इतने की,भूल गए ।
ये बज़्म में उनकी, अपनी गरिमा छांट आये है ।

मतलब से बने रिश्ते भला, कब तलक साथ चलेंगे ।
खुदगर्ज़ी इसकदर हावी है,कि नेकियाँ पाट आये हैं । 

आज इतराने दो उन्हें फ़राज़, ये भी यकीन जानों ।
वक़्त आने पर सभी,चार काँधों पर ही घाट आये हैं ।
©®राहुल फ़राज़

उम्मीदों का कारवां रुका तो है

दिल मे उम्मीदों का कारवां रुका तो है
कुछ भी कहलो,लेकिन दिल दुखा तो है 
 
जितनी भी थी ख्वाहिशें उनने दबाकर रखदी
ख्वाहिशों में भी बगवात का जिक्र हुआ तो है 

बंदिशें कोई कितनी ही लगा ले,इन पलकों पर
रुखसार पे मगर,अश्कों का असर हुआ तो है 

कितनी ही यादें हमने संजोयी है, साथ-साथ
गुजरते वक़्त के साथ राब्ता कम हुआ तो है
राब्ता=मेलमिलाप/संबंध 

जज़्बा-ए-दिल है मोहब्बत,कोई शर्त-गाह नही 
फ़राज़ उफ्फ करता नही,मगर दर्द हुआ तो है
©®राहुल फ़राज़ 
जज़्बा-ए-दिल=दिल की खुशी
शर्त-गाह=जहां शर्त के साथ कोई काम होता हो 

ज़ख्म गहरे उतर जाते हैं

बिखरकर संवरने का मैं रखूं हौसला कबतक ?
उफ्फ, यूं उम्मीदों पर जीना, आखिर कबतक ?

ज़ख्म गहरे उतर जाते है, कुछ और भी गहरे
समंदर में यूं सीप, खोजना, आखिर कबतक ?

तेरे उसूल, मेरी तमन्नाओं का टकराना लाज़मी नही
दिलों-दिमाग की जंग में पिसना,आखिर कबतक ?
लाज़मी=ज़रूरी 

बेशुमार थी दीवानगी गर, तो मोहब्बत आज भी है
पुराने वक़्त को यूं ही थामे रहना, आखिर कबतक

वक़्त की है खूबी फ़राज़, लौटकर वक़्त नही आता 
हर वक़्त, वक़्त का इन्तिज़ार आखिर कबतक...?
©®राहुल फ़राज़ 

ज़र्फ था न हुनर कोई

ज़र्फ़ था न हुनर कोई  ,        .दीवाने जैसा 
मैं फिसल जाता,बहक जाता, जमाने जैसा 
ज़र्फ़=योग्यता/सामर्थ्य

हर तरफ धुंध थी, कोहरा था, बराबर मेरे
तेरी यादों का सिलसिला था, रुलाने जैसा 
ज़र्फ़ था न.....

किश्तियाँ छोड़ दी, दरिया की निगेहबानी में
कितना मासूम था वो बचपन तुम्हारे जैसा 
ज़र्फ़ था न.....….

दिल मिले थे जवाँ लेकिन, लकीरें न मिली
लो टूट गया मेरा दिल भी, खिलौने जैसा 
ज़र्फ़ था न.....

क्या करें सोज़ के, हासिल न हुआ कुछ भी 
अब बचा क्या है फ़राज़ उनको, बताने जैसा 
ज़र्फ़ था न हुनर कोई  ,        .दीवाने जैसा 
©®राहुल फ़राज़ 
सोज़=दुःख

अपनें बदल गए हैं

एक रात में ही रिश्तों के मंजर बदल गए हैं 
नज़रों के अंदाज़,हाथों के खंज़र बदल गए है 

वो दावा करते हैं, दौरे ए मुश्किल में साथ देंगे
हम मजबूर क्या हुए, उनके तेवर बदल गए हैं 

जागते रहते थे, कभी साथ मेरे , मगर आज 
हमें नींद क्या आयी, उनके ख्वाब बदल गए हैं

जानतां हूँ,वक़्ते आखिर मुझे तन्हा रह जाना है
वक़्त के साथ क्या बेवक़्त भी,अपनें बदल गए हैं 

वादे पे ऐतबार के सिवा,तेरे हिस्से आया क्या फ़राज़
सख्त जान हो तुम,वर्ना इंतज़ार में लोग बदल गए है 
©®राहुल फ़राज़
DT:२४/०७/२०२२

Saturday, July 23, 2022

मैं मर गया तो ?

कोई बताएं बाद इसके, हालात  क्या होंगे
मैं गर, मर गया, तो फिर फसादात क्या होंगे 

किसी की आंख में न होगा अश्क मैं जानता हूँ
खुश्क आंखों में तब फिर सवालात क्या होंगे 

घर के किस कोने में दुबक जाएंगी सब यादें मेरी 
मेरी सजाई चीजों के, तब जज़्बात क्या होंगे 

किस चेहरे पर आएगी रौनक,किसका नूर बदलेगा 
पलपल बदलते लोगों के, फिर सबात क्या होंगे 
सबात=स्थायित्व 

बाद मौत के, तंज भी मुझपर, खूब कसेंगे लोग 
फ़राज़ उनके दिलों में नए, खुराफात क्या होंगे 
©®राहुल फ़राज़ 
Dt:२३/०७/२०२२

Friday, July 22, 2022

मुसीबतों का अंबार लगा दो

मेरे रास्तों में मुसीबतों का अंबार लगा दो तुम 
ये रास्ता न बदला जाएगा अंगार लगा दो तुम 

इक-इक कदम, बढ़ रहा हूँ मैं मंजिल की जानिब
तुम्हारी जितनी भी कूवत है,उतना जोर लगादो तुम

तेरी औकात से बढ़कर तो, मेरा रुतबा है ! नादान 
कदमोँ तक न पँहुचोगे, जितनी छलांग लगादो तुम

दोजख के कीड़े हो, यूंही बिल-बिलाते, रेंगते ही रहोगे 
मेरा नाखून न मैला होगा,जितना कीचड़ उछालदो तुम 

छीनकर रोशनी गैर की, करोगे घर मे उजाला कब तक 
उजाले ये धरे रह जाएंगे, जितनी मर्ज़ी दिये लगालो तुम 

तेरे मन भटकने का इलाज बस इतना है अहमक 
सुबह-ओ-शाम फ़राज़-ए-गली में फेरे लगादो तुम
©®राहुल फ़राज़

सोचता हूँ

सोचता हूँ इश्क़ पर लिख दूं मैं ग़ज़ल सारी
तेरा ख्याल आते ही, लगता है फिजूल सारी

तू जो इतने नाजों से इतराती है महफीलों में 
तूने तो बदल जाने की पार की है हदें सारी 

हर शक़्स पर छाया है यहां तेरे लफ़्ज़ों का फ़रेब
लफ्ज़ बा लफ्ज़ तूने बदल डाली है तहरीरें सारी 

तेरे आँसूओं के धोखे में आगये होंगे चंद लोग
बाकी है जमाने में नेकदिली और नेकियाँ  सारी 

नही जानते लोग खुदगर्ज़ी में लिपटा है सरापा तेरा
भारी हैं दो जहाँ की चालाकी और मक्कारिया सारी 

फ़राज़ न वो बदला है न बदलेगी ये सूरतें सारी 
बे फज़ूल है उसपर ये लिहाज और नसीहतें सारी
©®राहुल फ़राज़ 

तस्वीर के आगे निशानी रख देना

मेरी तस्वीर के आगे, निशानी रख देना कोई
मुझपर भी छोटीसी, कहानी लिख देना कोई 

दौर-ए-मुश्किलों को तितलियां समझता था
था एक बच्चा मासूम मुझमें लिख देना कोई 

गुनाह होगया साहिल पर रेत के घरौंदे बनाना 
समंदर को जालिम, मुझे मासूम लिख देना कोई

मुझे डसने वाले, मेरी ही आस्तीन में पलते रहे 
उनको जो मर्ज़ी कहो,मुझे चंदन लिख देना कोई 

अक्लमंद थे सारे, शतरंज की बिसात बिछाते रहे
सबको दानिश,फ़राज़ को अनाड़ी लिख देना कोई
©®राहुल फ़राज़ 

उसकी चालाकियों से बच निकला है

उसकी चालाकियों अब बच निकला है 
बड़ी मुद्दतों बाद,अब ये सच निकला है 

वो जिसकी औकात है बस दो कौड़ी की
उसके नाम पर एक बड़ा, घर निकला है

एक कमज़र्फ की गिरफ्त में था रिश्ता 
जिससे वो शख्स अब बच निकला है 

फरेबी थे सारे, रिश्तों का फरेब देते थे
बेड़ियां अब सारी वो, तोड़ निकला है 

दुनिया, जमाना, लोग, जाने क्या क्या
सारी हदों को तोड़, वो पार निकला है 

जिसकी रगों में है खून मक्कारी का 
वो अब बेचने अपना हुनर निकला है 

जिसने ओढ़ रखा था, इंसान का चोला
फ़राज़ वो शख्स बड़ा शैतान निकला है 
©®राहुल फ़राज़ 

ज़िंदगी तमाम यूं ही कट गई

ज़िंदगी तमाम यूंही बेफजूल सी कट गई 
सांस और आस के, दो हिस्सों में बट गई 

पूरे करने थे, कई अरमां, इसी हयात में 
उम्मीदें ज्यादा रही, बस्स सांसें जरा घट गई

हर किसी को हम अहमियत देने में रह गए
अपनी नेकदिली तबर्रुक सी,ज़माने में बट गई 

यूं भी किसी को मेरी मौत से सरोकार नही
खबर यूं बनी, और अखबारों में बट गई 

वक़्त से आगे निकलने की होड़ में फ़राज़
मंज़िलें-ए-मकसूद न हुई, सांसे घट गई ।
©®राहुल फ़राज़

Thursday, July 21, 2022

क्यों कहूँ उससे ?

क्यों कहूँ उससे,कि
मुझे भी, खत लिख दिया कर
बातें दो चार, मेरे
 मन माफिक 
लिख दिया कर.....
झूठ ही सही, लिख तो कभी
तुझे मैं याद आता हूँ
अक्सर मैं तेरे, जिक्र में आता हूँ
कभी मेरी भी, फ़िक्र कर लिया कर
क्यों कहूँ उससे, कि.......
..........
क्यों कहूँ कि... लिख
अब तेरे बिन, सब बेमानी है
बे स्वाद अब ,भोजन की थाली है
तेरे बिन, अब घूमने का 
मन नही करता....
खा भी लूं, 
तो भी पेट नही भरता
मन न करे तो भी
मेरा हाल, पूछ लिया कर......
क्यों कहूं कि.....लिख दिया कर
.......
लिख देना कभी, यूं भी
के ! तुझे अब हंसाता कोई नही
मेरी जैसी बातें
अब सुनाता कोई नही..
दिल खोलकर हंसे हुए
जमाना गुजर गया
चंद दिनों में ,तेरे बिन जैसे 
साल गुज़र गया
कभी मेरी तस्वीर देखकर
मुस्कुरा दिया कर....
......
क्यों कहूँ उससे,कि
मुझे भी, खत लिख दिया कर
बातें दो चार, मेरे मन माफिक 
लिख दिया कर.....क्यों कहूँ उससे???
मुझे भी खत, लिख दिया कर....
कभी
मुझे भी खत, लिख दिया कर...😢😢
©®राहुल फ़राज़ 

ज़िंदगी मे बस्स

ज़िंदगी मे हम बस, समझौते ही करते आये
जिसने जैसा चाहा, हम बस वैसे ही जीते आये 

रिश्ते बचाने की अहमियत उन्हें नही, हमको ही थी 
एक इसी कशमकश में हम,अपनी जुबाँ सिते आये

किसी रोज उसे भी होगा एहसास, हमारी कुर्बत का
अपनी गैरत की खातिर, खुलूस-ए-ज़हर पीते आये 
(कुर्बत=निकटता  |  गैरत =आत्मसम्मान | खुलूस-ए-जहर=वफादारी का ज़हर)

तगाफुल वो हमें करता रहा, अपनी हर अंजुमन में 
अपने इख्लास पर दे दूं जान, वो पल जीते आये 
तगाफुल=उपेक्षित । अंजुमन=सभा | इख्लास=निष्कपट-प्रेम 

इससे बढ़कर उम्मीद-ए-दिल कोई क्या होगा 
मुर्दा-दिलों में फ़राज़, ज़िंदा दिल खोजते आये
©®राहुल फ़राज़ 
उम्मीद-ए-दिल=उम्मीद भरा दिल | मुर्दा-दिल=जिसका दिल मर गया हो. 8

तेरे दिल में कहाँ बैठा हूँ

अब जान लिया मैंने, तेरे दिल में कहाँ बैठा हूँ 
जहाँ से मुझे, मेरी आवाज न आये वहां बैठा हूँ 

सराय समझ के आये ठहरे और निकल गए,अब
हर किसी के लिए, किवाड़ बन्द कर बैठा हूँ 

हर बार सताया-रुलाया मगर न मानी कभी 
ऐसी,ज़िंदगी से अब दो-दो हाथ कर बैठा हूँ 

जो तहरीरों में रहे करीब, कभी करीब रहे नही 
ऐसे लफ़्ज़ों से अब मैं बगवात कर बैठा हूँ ।

नज़रों से दूर होते ही देखा, नज़रें बदल जाती है 
ऐसी हर नज़र से अब मैं, बड़ी दूर जा बैठा हूँ 

फ़राज़ तू क्यों हर किसी से, उम्मीद लगा लेता है
मुझे देख, मै बड़ी उम्मीद से नाउम्मीद हुआ बैठा हूँ 
©®राहुल फ़राज़ 

मैं सांपों की ज़द में रहता हूँ

हाले दिल बयां अपना ,मैं पूरी बहर में करता हूं
उनके दिलपर सांप लोटते है, वो कहर मैं करता हूँ 

बगवात क्या करदी मैंने, आंख का तारा बन गया
आजकल तो मैं हर किसी की, नज़र में रहता हूँ

हर अज़ाब सहकर भी मैं,उफ्फ नही करता 
दरिया हूं मैं, हर प्यासे की नज़र में रहता हूं 

हर एक की मैं, फितरत से वाकिफ हूँ फ़राज़
चंदन हूँ मैं, हरपल सांपों की,जद में रहता हूँ 
©®राहुल फ़राज़

कहा था उससे

कहा था उससे.....!!😊😊
कहा था उससे, मत पढ़ मेरे अशआर महंगा पड़ेगा
हर एक लफ्ज़ दिल पर तेरे, किसी तीर सा पड़ेगा 
कैसे छीपाओगे जब, रुखसार पर लकीरें पड़ेंगी ? 
तेज बारिश में उस दिन तुझे, फिर भीगना पड़ेगा 
©®राहुल फ़राज़

Wednesday, July 20, 2022

तो अच्छे थे हम ??

जहां हांक दिया, चल पड़ते थे तो अच्छे थे हम
जिस दर पे कहा, सर झुकाया, तो अच्छे थे हम 

जवाब मांगे जब कुछ,तंग मेरे लहज़े से आगये
जब तेरी हाँ में हाँ मिलाते थे, तो अच्छे थे हम 

जिंदगी जीने के बदल लिए तरीके तो खफा हो 
जब अपने गम पर मुस्कुरातें थे, तो अच्छे थे हम 

हूँ मैं उनके करीब, जो अब अपनों से बढ़कर है
तेरे अपनों में जबतक बेगाने थे,तो अच्छे थे हम 

धुंआ हुई जिंदगी को, अब मैं धुंए में उड़ाता हूँ 
अपनें अश्क जबतक पीते थे, तो अच्छे थे हम 

चाह बस इतना कि, मेरे गैरत की हिफाज़त कर 
तेरे अपनों में जलील होते रहे, तो अच्छे थे हम 

दरवाजे अब बेगैरतों के लिए, खुलेंगे नही फ़राज़
कीचड़ में सने दानिशों से तो, सचमें अच्छे थे हम 
©®राहुल फ़राज़

दाग गहरी चोटों के

दाग गहरी चोटों के, यूँ मिटाए नही जाते
ज़ख्म जो दिलपर लगे,भुलाए नही जाते 

बड़ी गहरी थी साजिश और दूरंदेशी तुम्हारी
वर्ना, इतनी आसानी से मकाँ,बनाये नही जाते 

फिरता रहता दरबदर, वो भी बदहवास सा
अहमकों से भी कोई पहाड़,तोड़े नहीं जाते 

शतरंज भी तेरी थी, हर चाल भी तेरी ही थी
साजिशों में माहिर होते फ़राज़,मारे नही जाते
©®राहुल फ़राज़

गुरूर न कर

है तेरे ही हाथों में कमान ज़िन्दगी का
तू ही है जिम्मेदार, तमाम ज़िंदगी का 

अब! हांक दे जैसी मर्ज़ी, गाड़ी ज़िंदगी की 
दे दिया तुझे खुदा ने इल्म सही ग़लत का

है ये तेरी मक्कारी, अपने गुनाहों से तौबा नही
इल्ज़ाम खुदा पे धर दिया,अपने हर्फे गलत का

ये तेरी दानिशमंदी की बातें, ये तेरा दोगलापन 
तस्किम कर सब खुदा का है,वक़्त एहतराम का 

इल्म-दार होके भी फ़राज़, वो करता है जहालत की बातें
गुरूर न स्व(खुद) का,तू मोहरा है ज़िंदगी की बिसात का 
©®राहुल फ़राज़ 

तन में नही होता मोह कोई

तन में नही होता मोह कोई
मन मे बसी है तेरे माया
स्वार्थ में लिपटा तूं है बस
श्वास तो बस है एक माया
मन है तेरा मलिन-पापी
अकड़ में तू है भरमाया 
उसने दिया था निर्मल मन
तुमने उसमें मोह उपजाया 
जैसा बोओगे वैसा काटोगे
जमाना सदियोंसे कहता आया
©®राहुल फ़राज़ 

मनें आपोआप जुळतात

आपुलकी ठेवावी लागते, अन्तरमनात
मने आपोआप जुळतात......
संवेदना पाहिजे माणसाच्या, हृदयात
वेदना आपोआप कळतात......
जिव्हाळा असावा लागतो, माणसात
नाती आपोआप टिकतात.... 
स्व. चा त्याग करावा लागतो, जीवनात
आप्तजन आपोआप मिळतात.....
*मुळात, संस्कार पाहिजेत, माणसात*
*माणुसाकि चे गुण आपोआप कळतात....*
©®राहुल फ़राज़

लोभ-लालच में

लोभ-लालच के शर्करा में लिपटा
क्या जीवन कभी समझ पाया है?
धूर्त है वह, जो भगवा चोला ओढ़े 
खुद ही खुदमें भरमाया है 

स्वार्थ में गर तुमने काया जला ली
दौलत सारी अपने सिरहाने लगा ली
अंतिम क्षण में , ये सबकुछ लेकिन
तेरे काम नही आने वाला 
मर्म समझो जीवन का, क्योंकि
ये मनुष्य जीवन, फिर नही मिलने वाला।
©®राहुल फ़राज़

आश्रम चार है जीवन के

आश्रम चार है जीवन के 
जिसने सत्य ज्ञान ये पाया है
उसने फिर हर मोह को त्यागा
जीवन सार्थक कर पाया है
ये चार ऋण है जो तुम्हे निभाने है
तर्पण में पितृ सारे, तृप्त तुम्हे कराने है
माया के फेर में तेरी, काया घिस जानी है
जो भी पास है तेरे , बस उसे बांटता चल 
साथ मे अन्तिम, शून्य ही जायेगा 
बात यही समझानी है।
©®राहुल फ़राज़

सब फ़रेब है

बेहिसाब ऐब है मुझमें, तो छोड़ दे
नही है तेरे काम की चीज़,तो छोड़ दे

ये सारे गम मुझे, मेरे यार लगते है 
तुझे मेरी यारी से नही मतलब,तो छोड़ दे

टुकड़ो में,कतरनों में कई हिस्सों में बिखरा हूं
तुझसे गर मैं समेटा नही जाता, तो छोड़ दे 

सच के हिमायती थे सारे, मेरे सच से ढह गए
तुझसे भी गर झूठ बोला नही जाता,तो छोड़ दे 

ग़मों को, शराब में डुबोकर मारता हूँ हर शाम
तेरे मेयार के मुतक़बिक नही काम,तो छोड़ दे

ज़िंदगी ने कहां उसे, जीने के काबिल रखा 
तुझे छोड़कर गर मरता है फ़राज़, तो छोड़ दे 
©®राहुल फ़राज़ 

तो छोड़ दे..

बेहिसाब ऐब है मुझमें, तो छोड़ दे
नही है तेरे काम की चीज़,तो छोड़ दे

ये सारे गम मुझे, मेरे यार लगते है 
तुझे मेरी यारी से नही मतलब,तो छोड़ दे

टुकड़ो में,कतरनों में कई हिस्सों में बिखरा हूं
तुझसे गर मैं समेटा नही जाता, तो छोड़ दे 

सच के हिमायती थे सारे, मेरे सच से ढह गए
तुझसे भी गर झूठ बोला नही जाता,तो छोड़ दे 

ग़मों को, शराब में डुबोकर मारता हूँ हर शाम
तेरे मेयार के मुतक़बिक नही काम,तो छोड़ दे

ज़िंदगी ने कहां उसे, जीने के काबिल रखा 
तुझे छोड़कर गर मरता है फ़राज़, तो छोड़ दे 
©®राहुल फ़राज़ 

तुम्हारी चालाकीयाँ

हाथ मिलाए तो थे हमने
उंगलियां भी, गुंथी थी.... 
कुछ पल को ही सही...
फिर ,छुड़ा दिया तुमनें..
अपना हाथ..मुझसे और..
अपना दामन भी..
जाने कितना कुछ
टूट गया..... था
उस रोज..... उस एक पल में
घर के कोने में, पड़े वो
रजनीगंधा के फूल भी
मुरझा गए थे....मेरी ही तरह
और फिर खत्म होगई...
उनकी खुशबू....मेरे अरमानों की
तरह...उस एक पल में
...... जाने क्या था वो..
मेरा भोलापन या तुम्हारी 
चालाकियां.......😢😢😢
©®राहुल फ़राज़

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...