Friday, July 22, 2022

सोचता हूँ

सोचता हूँ इश्क़ पर लिख दूं मैं ग़ज़ल सारी
तेरा ख्याल आते ही, लगता है फिजूल सारी

तू जो इतने नाजों से इतराती है महफीलों में 
तूने तो बदल जाने की पार की है हदें सारी 

हर शक़्स पर छाया है यहां तेरे लफ़्ज़ों का फ़रेब
लफ्ज़ बा लफ्ज़ तूने बदल डाली है तहरीरें सारी 

तेरे आँसूओं के धोखे में आगये होंगे चंद लोग
बाकी है जमाने में नेकदिली और नेकियाँ  सारी 

नही जानते लोग खुदगर्ज़ी में लिपटा है सरापा तेरा
भारी हैं दो जहाँ की चालाकी और मक्कारिया सारी 

फ़राज़ न वो बदला है न बदलेगी ये सूरतें सारी 
बे फज़ूल है उसपर ये लिहाज और नसीहतें सारी
©®राहुल फ़राज़ 

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