Sunday, December 05, 2021

दर्द स्याही बन बहता रहा

सारी रात रहा, तेरे खयालों में ग़ाफ़िल,
यूँ ही रात निकल गई।
दर्द स्याही बन बहता रहा 
कागज़ पर,कलम से बात निकल गई।
©®राहुल फ़राज़
Dt:5 Feb 2018

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