Sunday, December 05, 2021

फिरता रहा दरबदर....

फिरता रहता दर-बदर
ठोकरें खाता हुआ 
तुमनें सीने से लगाया
मैं, गुलाब हो गया

मैं, जिसकी खबर भी
न,पूछता था कोई
आज इक चांद का मैं
ख़्वाब हो गया....

तुमने चूम लिया माथा मेरा
जिस रोज, दफ़्फ़तन...
शोला था मैं, आब में 
तब्दील हो गया...

कुछ पल मोहब्बत के,खुदा ने 
तक़दीर में ,लिख दिए
तुमसे मिलकर, फ़राज़ अब
मुक्कमल हो।गया ....
©®राहुल फ़राज़
Dt: 25 nov 2018

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