Sunday, December 05, 2021

अज़ीब सा दर्द दे गया कोई

अजीब सा दर्द दे गया कोई
मुश्किलें बड़ी सर्द दे गया कोई 

जीने की ख्वाहिश कम हुई जाती है
हौसला मगर सख्त दे गया कोई

मैं तबस्सुम पे यकीं रखतां था मगर
जाने क्यों मिरे होंठ सी गया कोई 

शर्मसार हो गई, आज फिर दुनिया 
भरोसे का आज फिर, कत्ल कर गया कोई

रंगों में बंट के रह गया मज़हब 'फ़राज़'
जहन में ये कैसा ज़हर घोल गया कोई 
©®राहुल फ़राज़
Dt: 25 April 2018

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