Sunday, December 05, 2021

वो दिन भी थे...

वो दिन भी थे इन आंखों में डूब जाते थे
पानी का फ़रेब समेटे इक सहरा तो हूँ न ?

पाँव भी मेरे दिल सा पत्त्थर हुआ जाता है
आंखों में अश्क़ न सही पर इंसान तो हूँ न ?

दीवाने की तक़दीर में कहाँ ईद का चाँद
हसरतें दीदार की तेरे मज़ार तो हूँ न ?

बहोत सख्त से थे तेरे लहज़े तेरी बातें
तेरे साँचे में जो ढल गया वो मोम तो हूँ न ?

फ़तह हासिल कर कूच कर जातें है सब 
ता उम्र तेरे दिल मे रहूं वो अरमां तो हूँ न ?

क्या हुआ जो मेरे हिस्से कोई रियासत न आयी
बेकमाल ही सही फ़राज़ बेमिसाल तो हूँ न ?
©®राहुल फ़राज़
Dt:18 jan 2018

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