झड गये पत्ते सभी दरख्तों के, इस पतझड के मौसम में
ऐसा ही है कुछ हाल दिल का, इस पतझड के मौसम में
दरिया सुखे और प्यास बढी दरख्तों की, पतझड के मौसम में
हम भी तरसे है पानी को इसबार, पतझड के मौसम में
खिलनी थी जो कलिया वो मुरझा गयी, पतझड के मौसम में
खिल न सकी मेरे दिल की भी उमंगे, इस पतझड के मौसम में
जो ये बादल बरसेंगे तब सुकुन मिलेगा इन दरख्तों को
बिखरी जो जुल्फे तेरी, अबके इस पतझड के मौसम में
उतर रही छाले पेडों की भी, इस पतझड के मौसम में
अबके बरस मेरे पैरो में पडे छाले, पतझड के मौसम में
बिछड गये परिन्दे सभी इन दरख्तों से पतझड के मौसम में
''फराज'' को तुम याद बहोत आये, इस पतझड के मौसम में
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
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