हर पेडों पर नये पत्ते आये हर कली इक फूल बनीं
मेरे दिल में उम्मीदों का गुलशन खिला जब सावन आया
पहाडों से दरिया बहे परिन्दों ने भी अब गाना गाया
तरन्नुम मोहब्बत के फुटे मेरे दिल से जब सावन आया
दिखनें लगे है अब घौसलें परिन्दों के हर इक डालों पर
मुझमें भी तम्मनां घरौदें की जागी,जब सावन आया
फूलों पर मंडराते भंवरे तितलियों का भी है अपना शोर
मैं भी इक फूल चुनुं ऐसा लगा,जब सावन आया
परिन्दों के जोडे अब तो रोज ही मेरे आंगन में आते है
''फराज'' का भी कोई होता साथी ऐसा लगा जब सावन आया
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
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