Tuesday, May 01, 2012

मां सिर्फ शब्‍द नहीं है गीता है

मां सिर्फ शब्‍द नहीं है गीता है
कुरान की आयतें है
राम की कौशल्‍या है
कान्‍हा की मैया है
लव-कुशों की मां सीता है
               मां सिर्फ शब्‍द नहीं है गीता है
अविरत अपना प्रेम बहाती
उफ नां करती,क्रोध न करती
आडंबर, मद, लोभ न करती
कभी कृष्‍ण प्रेम मे मीरा बनती
कान्‍हा की कभी राधा बनकर
बहाती अद्भुत प्रेम सरिता है
               मां सिर्फ शब्‍द नहीं है गीता है
पृथ्‍वीराज का शौर्य सराहती
कपूतों के छल पर कराहती
पल-पल छलनी होते ह्रदय से
रायगढ से आस लगाती
शिवराय सा पुत्र जनने वाली
धन्‍य जिजाबाई वो माता है
               मां सिर्फ शब्‍द नहीं है गीता है
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज''

5 comments:

  1. Its really a nyc and a touching poem and its true that the is nothing more wonderful on earth than mother, its forms are vivid and she is just a god on earth.

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  2. आपकी यह कविता वाकई मन मोहती है।

    बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका।

    सादर

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  3. माँ ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है।
    बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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    Replies
    1. धन्‍यवाद शांति जी


      आभार

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