कोई ये ना पूछे हमसे के गजल कब बनती है
टुटते है जब दिल दिवानों के तब गजल बनती है
जब हुस्न इश्क से टकराता है और नजर
नजर से टकराती है तब गजल बनती है
जब आंसू जुदाई के बहते हैं ऑंखों से और
दिल मिलनें को तडपता है तब गजल बनती है
जब मिलते मिलते बिछडते है दिवाने और
छुट जाता है साथी का साथ तब गजल बनती है
दिल लगाकर संगदिलों से जब 'फराज'
दिवानें होते है नाकाम तब गजल बनती है
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
टुटते है जब दिल दिवानों के तब गजल बनती है
जब हुस्न इश्क से टकराता है और नजर
नजर से टकराती है तब गजल बनती है
जब आंसू जुदाई के बहते हैं ऑंखों से और
दिल मिलनें को तडपता है तब गजल बनती है
जब मिलते मिलते बिछडते है दिवाने और
छुट जाता है साथी का साथ तब गजल बनती है
दिल लगाकर संगदिलों से जब 'फराज'
दिवानें होते है नाकाम तब गजल बनती है
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
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