आपने प्रियतम के गजरे मे उल्झा सुगन्धित केश हूं
मरिचिका मे प्रेम खोजता, मृग मे विशेष हूं
प्रेम युध्द मे पराजित अब खन्डहर बना हुआ.
अवशेष बनकर भी अब तक इस धरा पर शेष हूं.........
तुम्हारे अकल्पित प्रेम गीतो का मै संगीत विशेष हूं
भवरे का गुन्जन,मन का क्रृन्दन,अश्रुपूर्ण नेत्रो का अन्जन शेष हूं
अपनी स्मृतियों से भले कर दिया विस्मृत तुमनें, मगर..
उन गीतो की, स्मृतियो मे अब भी मै विशेष हूं ....
प्रेम में विद्रोह की,बिछोह में क्रोध की, गून्ज मै विशेष हूं
जात-पात धर्म की लंका लांघता,वानर मै विशेष हूं
युद्ध मे पराजित , रक्त्त से रंजित,आहत और मृत प्रायाः
हर अपने पराये के मन मे उभरा,श्याम वर्ण द्वेष हूं....
राहुल उज्जैनकर ''फ़राज़''
मरिचिका मे प्रेम खोजता, मृग मे विशेष हूं
प्रेम युध्द मे पराजित अब खन्डहर बना हुआ.
अवशेष बनकर भी अब तक इस धरा पर शेष हूं.........
तुम्हारे अकल्पित प्रेम गीतो का मै संगीत विशेष हूं
भवरे का गुन्जन,मन का क्रृन्दन,अश्रुपूर्ण नेत्रो का अन्जन शेष हूं
अपनी स्मृतियों से भले कर दिया विस्मृत तुमनें, मगर..
उन गीतो की, स्मृतियो मे अब भी मै विशेष हूं ....
प्रेम में विद्रोह की,बिछोह में क्रोध की, गून्ज मै विशेष हूं
जात-पात धर्म की लंका लांघता,वानर मै विशेष हूं
युद्ध मे पराजित , रक्त्त से रंजित,आहत और मृत प्रायाः
हर अपने पराये के मन मे उभरा,श्याम वर्ण द्वेष हूं....
राहुल उज्जैनकर ''फ़राज़''
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