हमनें अपनां हाल-ए-मोहब्बत तुम्हे सुनाया था जब
तब, सुनकर मेरा दर्द-ए-दिल तुम हॅंस दिये
मानां के बहाना था मेरा शेर सुनानां तुमको मगर
सुनकर मेरे शेरों में अपनां नाम तुम हॅंस दिये
वादा किया था तुमनें साथ चलनें का जरा दूर तक
तब देकर मेरे हाथों में अपनां हाथ तुम हॅंस दिये
हो रहा था चर्चा तुम्हारें हुस्न का सारी महफिल में
कहते ही मेरे तुमको चॉंद, तुम हॅंस दिये
कल नजर टकराई थी तुमसे जो छतपर, तब
देख मेरा लडखडानां , तुम हॅंस दिये
हॅसनें का शौक हमें भी है, पर तुमसा हॅंसनां नही आया
दिवानों से सुनकर पैगाम मेरी मौत का, तुम हॅंस दिये
द्वाराः राहुल उज्जैनकर ''फराज''
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