Sunday, December 02, 2012

मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं ?

मैं मौन क्‍यों रह जाता हूं

इतने कष्‍ट, संताप तुम्‍हारे
सारे क्‍युं मै सहता हूं.....
ठुकराती हो तुम हर बार
मगर....
खामोश खडा रह जाता हूं
ऑखों में लाकर आंसु
जब....
मुझसे लिपट तुम जाती हो
उस एक पल में मैं
स्‍वयं कुबेर हो जाता हूं...
अब समझी ?
अक्‍सर,मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं.....

नैनों से छुप नहीं पाता
मृदुल और अलौकिक नेह
गौण हो जाती है
अपनें बीच
नश्‍वर और मतवाली देह
घटा बनकर बरसती हो
जब तुम......
मैं मयुर बन जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं.........

कभी रौद्र कभी संयम में
रहती अल्‍हड नदी सी तुम
कलरव का होता आभास
कभी...
कभी... झंकार पायल की
बहती रहती अविरत ..निश्‍चल
कभी..
कभी, तान सुनाती कोयल की
तुम्‍हारे मिलन की चाह में,मैं
सागर गहरा बन जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर, मैं मौंन क्‍युं हो जाता हूं

प्रेम की परिभाषा हो तुम
भक्ति में डूबी गाथा
छल-कपट हर द्वेश सहती
मगर.....
टुट ना पाता, तेरा मेरा नाता
मीरा जब तुम बन जाती हो
मैं तब श्‍याम हो जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर, मैं मौन क्‍यूं हो जाता हूं
          मैं मौन क्‍यूं हो जाता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़' 

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