Wednesday, July 11, 2012

कुछ लोग तुझसे हरवक्‍त मुझे मिलनें नही देते

कुछ लोग तुझसे हरवक्‍त मुझे मिलनें नही देते
गुलशन मेरे अरमानों के ये खिलनें नही देते
देते है फ़रेब 'फ़राज़',हर वक्‍त मुझे लफ़जों से
परवान ये मोहब्‍बत को मेरी चढनें नही देते
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
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भूल जानें वालों में मुझे शुमार1 करनें वाले
नीमबाज़2 ऑखों से मुझे बिमार करनें वाले
होके मेहरबां मुझे अपनी अंजुमन3 में शुमार कर
बेशुमार बेकदरों में'फ़राज़'को शुमार करने वाले
राहुल उज्जैदनकर 'फ़राज़'

1-शामिल करनां
2-नशीली ऑखें
3-महफिल,सभा
 
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हर गम से इस जमानें को जुदा करगये जो
इस इश्‍क पें अपनीं जॉं निसार कर गये जो
उनकी कब्र पे चिराग भी नही जलते 'फ़राज़'
मोहब्‍बत को जमानें में खुदा करगये जो...
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
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हर गम, हर खुशी, हर अपनें, में तलाश करता हूं
हर कायनात, हर ज़र्रे, हर शै, में तलाश करता हूं
बनकर प्‍यार, 'फ़राज़'के दिल में समानें वाले
तुझे दिल के हर इक कोने में तलाश करता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
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 दिल-ए-सहरा में प्‍यार का चमन लगाओ तुम
बे-रौशन है दुनिया प्‍यार का चिराग जलाओ तुम
जब कहती हो की,तुम्‍हे मोहब्‍बत है मुझसे..तो
बनके दिवानी किसी दिन गले लगाओ तुम !!
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
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5 comments:

  1. हमनें भी तबसे बा-वफा रहने की कसम खा ली
    तुमको जबसे 'बे-वफाई' का चस्‍का लगा है ...........

    राहुल उज्‍जैनकर 'फराज'

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  2. बहुत सुन्दर सभी बेहतरीन है..
    मनभावन प्रस्तुति...
    :-)

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  3. बेहतरीन............
    लाजवाब शेर...

    अनु

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  4. आप सभी का सादर अभिनंदन

    धन्‍यवाद

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